गंगा घर में नहीं थी | यह देख कर पंडित रामदीन का मगज फीर गया | वह हाथ में लठ ले कर दरवाजे के पास आ कर बैठ गया | गंगा "की वजह
से बहुत दिनों से परेशां था | उसकी नींद भी हराम हो गयी थी| बिरादरी में बेआबरू हो गया था वह|
पडोश में रहेनेवाले प्रेमशंकर का टोना सुन सुन कर उसका मगज फीर गया
था| सारे गाँव में प्रताप और गंगा के प्रेम की बातें हर किसी की जीभ पर थी |
ऐसे में गंगा आ गई | पंडित जी गुस्से में पागल हो गया था|घर में भूमा भूम
कर दी "कहाँ गई थी तू?" चिल्लाने लगे|गंगा शांत रही तो फीर से पंडित जी
बरस पड़े "बोलती क्यों नहीं?"
फीर गंगा के बाल खिंच के रूम में लाये | लाठी से मार मार के अपने गुस्से को
शांत किया " तुम्हे शर्म नहीं आती एक दोबी से मिलते हुए? जो मुझे पता होता
की ऐसा हे कलंक लगाने वाली है तो तेरा गला दबा के उसी वक्त मार देता"
"सुन ले अगर आज के बाद अगर घर से बहार निकली है तो तुझे मार डालूँगा|
यह आख़िरी भार तुम्हे कहे रहा हूँ|" पंडित जी बड बड करने लगे "बिरादरी में
तो तुने मेरा नाक कपा दिया है |"
गंगा आखी रात रोंती रही | वैसे तो वो इन सभी बातों की उसे आदत हो चुकी थी|
पर आज उसका भोला मन भागवत करने लगा था | महीनो से दबी चिंगारी
अब आग बन गई थी | पंडित की लाठी उसके प्रेम के मार्ग में बादा नहीं बन सकी |
रात का सन्नाटा था और बारिश जोर से बरस रहा था | गंगा ने अपनी पोटली बगल
में दबाके राखी थी और वह घर छोड़ के निकल गई| आज वह अपने पिता और
बिरादरी को छोड़ के जा रही थी | गंगा उस तरफ जाने लगी जहाँ प्रताप उसका
इन्तेजार कर रहा था | दोनों बरसात की परवा किए बीना जंगल से होते हुए
यमुना नदी के और चल दिए | यमुना नदी का पानी पुर होने की वजह से
जोरदार बहे रहा था | किनारे पर लगी नाव में बैठ गए| नाव चलते चलते
पंडित रामदीन की बीरादरी छोड़ के पानी पर चलने लगी|
"प्रताप" गंगा बोली
"बोल"
"कहाँ जाना है?"
"जहाँ कोई बिरादरी न हो और जहाँ कोई नात जात ना हो,ना कोई ब्राहमण हो
ना कोई धोबी हो , बस केवल प्रेम ही प्रेम हो "
सुबह होते ही एक तूफान और उठा | पंडित रामदीन के हाथ में एक मोटी
लाठी नजर में आने लगी| उनके साथ दुसरे १०-१५ लोग भी शामिल हो गए |
"रामदीन यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है| तुमने ब्रह्मण लोगो का नाक
कपाया है |" करसन काका ध्रुन्जते हुए हाथो से कहने लगे |
बिचारा रामदीन क्या भोले ब्राहमण समाज में मुह देखने लायक नहीं रहा था|
सभी लोग प्रताप के घर तरफ लाठी ठोकते हुए जाने लगे|
"बहार निकल ओ भाबुराम" प्रताप के घर के पास जा के भूमाभूम करने लगे|
डरते हुए प्रताप के पिता बहार निकले और किसी ने उनका कोलर खीच के
बिच में लाये | "बोल कहाँ है प्रताप?" ब्राहमणों की भीड़ में से किसी ने
सवाल किया| भाबुराम अभी कुछ बोले उस से पहले किसी ने लठ का एक
जोरदार वार उसके सर पे किया" उलटे मुह वह जमीन पर गीर पड़ा |
"कौन है?मारो मारो " धोबीओं का टोला लाठी लेके आ पहुंचा |
फीर तो बात हे क्या करनी ? दोनों के बीच में जबरदस्त मारा मारी
होने लगी |"
आग की तरह बात सरे गाव में फहल गयी |कितने ही घरो में चूले
नहीं जले| पर पंडित रामदींन का पडोसी जो रामदीन से बहुत
जलाता था उसके घर में गरमा गरम पुरियां बन रही थी |
फीर क्या था गाव में पोलिस आई और उन्होंने भी दोनों और
से अपनी पेट पूजा कर ली|
फीर क्या था सभी लोग अपने अपने घर चल दिए | ३-४ लोग बाबुराम
के घर बैठे थे और करसन काका के साथ कुछ लोग रामदीन के यहाँ
बैठे थे|
शाम को कोई दौड़ते हुए आया| उसने कुछ कहा और सभी लोग जो
आपस में लड़ रहे थे वह जंगल के रास्ते होते हुए जमुना नदी की और
भागने लगे| भाबुराम और रामदीन दोनों जन सब कुछ भूल कर
यमुना नदी की और भागने लगे |
यमुना नदी के किनारे दो लाश पड़ी थी | सबी लोगो के चहेरे पर
दुःख की चाय थी | पंडित रामदिन को देखा तो उसे चक्कर आ रहा
था | आँखे स्थिर हो गयी थी|किनारे पर गंगा और प्रताप दोनों
की लाशें पडी थी|शायद उनकी नाव उलटी हो गयी थी|
दो प्रेमी जीव हमेशा के लिए गामकी बिरादरी छोड़ के बहुत दूर
चले गए थे|
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