धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास गया। पेड़ पर से शव को उतारा और उसे अपने कंधे पर डाल लिया। फिर श्मशान की ओर बढ़ता हुआ जाने लगा। तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ''राजन्, अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए परिश्रम किये जा रहे हो। तुम्हारे ये प्रयास अवश्य ही प्रशंसनीय हैं। परंतु यह मत भूलना कि कार्य की सिद्धि केवल सहनशक्ति व परिश्रम से ही संभव नहीं होती है। इसके लिए आवश्यक है, विवेक और लोकज्ञान। इनके साथ-साथ वाक्चातुर्य की भी ज़रूरत पड़ती है। ये गुण तुममें मौजूद हैं या नहीं, इसका निर्णय तुम्हें ही करना होगा। इसके लिए मैं तुम्हें एक राजा की तीन बहुओं की कहानी सुनाऊँगा। उनकी कहानी तुम्हारे निर्णय में सहायक बन सकती है। थकावट दूर करते हुए आराम से उनकी कहानी सुनो।'' फिर वेताल उनकी कहानी यों सुनाने लगा : महेंद्रपुरी के राजा का विवाह संपन्न हुए कई साल गुज़र गये। परंतु उनके संतान नहीं हुई। राजा और रानी ने संतान की प्राप्ति के लिए कितने ही व्रत रखे, कोई ऐसा पुण्य क्षेत्र नहीं, जहाँ वे नहीं गये हों। आख़िर निराश होकर वे इस निर्णय पर आ गये कि अब उनके कोई संतान नहीं होगी। एक दिन रात को रानी ने सपने में पाँच मुखवाले नागराज के दर्शन किये। उन्होंने रानी से कहा, ''मेरे मंदिर के प्रांगण में काले पत्थर के नाग की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करो। अगर तुम चालीस दिनों तक उस प्रतिमा का अभिषेक दूध से करोगी तो तुम्हें संतान होगी।'' सबेरे जागते ही रानी ने राजा से सपने के बारे में बताया और कहा, ''हमारे इष्टदेव नागेंद्र ने जैसे कहा, वैसे ही करेंगे।'' एक सप्ताह के अंदर ही, राज दंपति ने पर्वत पर नागेंद्र के मंदिर के प्रांगण में नाग प्रतिमा का प्रतिष्ठापन किया। राजा और रानी दोनों बड़ी ही श्रद्धा-भक्ति के साथ उस नाग प्रतिमा का अभिषेक दूध से करने लगे। चालीसवें दिन एक विचित्र व्यक्ति रानी के पास आया, जिसे उसने इसके पहले कभी नहीं देखा था। वह पतला, लंबा और बिल्कुल ही काला था। अपने कंधे में लटकती हुई थैली में से उसने तीन आम निकाले और उन्हें रानी को देते हुए कहा, ''मंदिर के अंदर जाओ और इन्हें खाओ। तुम्हारे तीन सुंदर पुत्र होंगे।'' रानी ने श्रद्धापूर्वक आँखों से उन फलों का स्पर्श किया। मंदिर में जाकर उस विचित्र व्यक्ति के दिये फल खाये। नौ महीनों के बाद रानी तीन सुंदर पुत्रों की माँ बनी। राज दंपति ने उनके नाम रखे, जय, विजय, अजय। बड़े ही प्रेम के साथ वे उनका पालन-पोषण करने लगे। तीनों राजकुमार सुंदरता में, अ़क्लमंदी में, पराक्रम में किसी से भी कम नहीं थे। बीसवें साल की उम्र में पहुँचते-पहुँचते उन्होंने समस्त विद्याएँ सीख लीं। राजा ने, तीनों बेटों की शादियाँ एक ही मुहूर्त पर करवायीं। तीनों बहुएँ, सामंत राजाओं की बेटियाँ थीं। समय बीतते-बीतते राजा का स्वास्थ्य गिरता गया। बुढ़ापे ने उन्हें और कमज़ोर कर दिया। राजवैद्यों ने स्पष्ट कह दिया कि उनके स्वास्थ्य में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। अब राजा के सामने कठोर समस्या खड़ी हो गयी। वे निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि तीन युवराजों में से किसे राजा घोषित करें, क्योंकि तीनों समान रूप से समर्थ, बुद्धिमान् व पराक्रमी थे। राजा ने खूब सोचा-विचारा और राजा को चुनने की जिम्मेदारी अपने प्रधान मंत्री चंद्रशेखर को सौंपी। दूसरे ही दिन, प्रधान मंत्री ने युवराजों की तरह-तरह से परीक्षाएँ लीं। मुख्यतया, राजनीति से संबंधित प्रश्र्न उसने उनसे पूछे। हर प्रश्न में तीनों ने समान प्रतिभा दर्शायी। प्रधान मंत्री चंद्रशेखर ने जो हुआ, राजा को बताया और कहा, ''महाराज, तीनों राजकुमार सिंहासन पर आसीन होने के योग्य हैं। उनकी योग्यता समान है। इनमें से किसी एक को राजा घोषित करें तो शेष दो के साथ अन्याय होगा।'' राजा चिंतित हो उठे और कहा, ''प्रधान मंत्री, लगता है, समस्या और जटिल होती जा रही है। अब हम करें भी क्या?'' मंत्री ने लंबी सांस खींचते हुए कहा, ''महाराज, एक उपाय है। अगर आप अनुमति देंगे तो आपकी तीनों बहुओं से अलग-अलग मिलना चाहता हूँ और उनसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। उनके दिये जवाबों से यह फैसला आसान हो जायेगा कि इन तीनों राजकुमारों में से किसे राजा चुनें।'' राजा ने कहा, ''जो भी करना है, शीघ्र कीजिये। मेरे सिर पर से यह बोझ उतार दीजिये।'' कहते हुए उन्होंने अपना मुकुट दिखाया। इसके बाद राजा के आदेशानुसार, पहले जय की पत्नी कमरे में आयी, जहाँ राजा और मंत्री दोनों बैठे हुए थे। मंत्री ने उससे पूछा, ''देवी, तुम्हारे पति को अगर राजा घोषित न किया जाए तो तुम क्या करोगी?'' जय की पत्नी के मुख पर निराशा स्पष्टगोचर हो रही थी। उसने दबे स्वर में कहा, ''किसी देश का राजा बनना भाग्य की बात है। अगर मेरे पतिदेव के भाग्य में यह बदा न हो तो चुप रहूँगी।'' उसके जाने के बाद विजय की पत्नी आयी । मंत्री ने वही सवाल उससे भी पूछा। इसपर विजय की पत्नी ने उदास स्वर में कहा, ''क्या करूँगी? मन ही मन इस बात को लेकर कुढ़ती रहूँगी कि भगवान ने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी। हो सकता है, मेरी श्रद्धा-भक्ति में कोई कसर रह गयी हो।'' अंत में अजय की पत्नी आयी। जैसे ही मंत्री ने सवाल किया उसने कडुवे स्वर में कहा, ''प्रधान मंत्री के दिमाग़ में ऐसे विचार उत्पन्न हुए कैसे? मेरे पति का राजा न होने का सवाल ही नहीं उठता। मैं अपने पति के शक्ति-सामर्थ्य, महिमा, कौशल बखूबी जानती हूँ। जीवन में उनकी हार कभी होगी ही नहीं।'' उसके जाते ही, मंत्री ने राजा से कहा, ''महाराज, अजय को राजा घोषित कीजिये।'' वेताल ने यह कहानी सुनाने के बाद कहा, ''राजन्, मंत्री चंद्रशेखर ने राजा को जो सलाह दी, वह विवेकहीन और राजनैतिक चातुर्य से खाली लगता है। बहुओं की परीक्षा लेकर, पुत्रों की योग्यताओं का पता लगाना क्या विचित्र नहीं लगता? दोनों बड़ी बहुओं ने अपने उत्तरों में सौम्यता दर्शायी । भगवान के प्रति उनका विश्वास उनके उत्तरों में स्पष्ट है। पर अजय की पत्नी ने, कडुवे स्वर में उत्तर दिया। लगता है कि उसमें अहंकार कूट-कूटकर भरा हुआ है। अपने वाक्चातुर्य से उसने यह कह डाला कि उसके पति के समान कोई दूसरा है ही नहीं। क्या मंत्री के मन में यह भय उत्पन्न हो गया कि अगर उसके पति को राजा घोषित न किया जाए तो वह पति को विद्रोह करने के लिए सन्नद्ध करेगी और देश भर में अशांति फैलायेगी। क्या इसी भय के मारे मंत्री ने महाराज को ऐसी निरर्थक सलाह दी? मेरे इन संदेहों के समाधान जानते हुए भी चुप रह जाओगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।'' विक्रमार्क ने कहा, ''पहले ही यह स्पष्ट हो गया कि तीनों राजकुमार सिंहासन पर आसीन होने के लिए एक समान योग्यताएँ रखते हैं। तीनों में से कोई भी यह आग्रह नहीं करता कि वही सिंहासन पर आसीन हो। किन्तु पुरुष की व्यवहार-शैली पर पत्नी का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य होता है। बड़े से बड़े राजा भी इससे परे नहीं हैं। इसीलिए मंत्री जानना चाहते थे कि राजा की बहुओं की मानसिक स्थिति के अनुसार राजकुमारों की अतिरिक्त योग्यताएँ क्या हैं। इसी को दृष्टि में रखते हुए मंत्री ने यह निर्णय लिया । यह कोई निराला निर्णय नहीं है। इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि राजा की तीनों बहुएँ मर्यादा का पालन करती हैं। दूसरों का आदर करना भी वे भली-भांति जानती हैं। परंतु जय की पत्नी सहनशील स्त्री है। परिस्थितियों से वह समझौता करनेवाली स्त्री है। विजय की पत्नी को भगवान पर पूरा-पूरा भरोसा है। परंतु अजय की पत्नी का स्वभाव इन दोनों से भिन्न है। पति के आत्मविश्वास और धैर्य-साहस को बढ़ानेवाले स्वभाव की है वह। राजा में अनिवार्य रूप से होना चाहिये, अटूट आत्मविश्वास। अजय की पत्नी जैसी स्त्रियॉं इस प्रकार के विश्वास को प्रोत्साहन देती हैं। यद्यपि तीनों राजकुमार एक समान योग्यताएँ रखते हैं, परंतु धर्मपत्नी का सहयोग और प्रोत्साहन उसकी अतिरिक्त योग्यता है। इसीलिए मंत्री ने अजय को राजा घोषित करने की सलाह दी। इस भय के मारे यह घोषणा करने के लिए नहीं कहा कि ऐसा न करने पर वह अपने पति से विद्रोह करायेगी या शांति में भंग डालेगी।'' राजा के मौन-भंग में सफल वेताल शव सहित ग़ायब हो गया और फिर से पेड़ पर जा बैठा। Warm Regards, Sunny Chouhan ( 98281-30409 email-sunny_ |
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