Thursday, November 27, 2014

[Hindi Jokes] Poem/Kavita (27.11.14)

 


CHAK DE

पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे, 
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...

एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.

तुमने देखा कभी चाँद पर बैठा पानी?
मैने उसके रुखसर पर बैठा देखा.

हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश...
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.

थे नही माँ-बाप उसके..
उसे माँ का प्यार आैर पापा के हाथों की कमी मेहंसूस करते देखा.

जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा

रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे...
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.

हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देकखा.

नामकूल रही दिवाली मेरी...
जब मैने जि़दगी के इस दूसरे अजीब से पहेलु को देखा.

कोई मनाता है जश्न
आैर कोई रेहता है तरस्ता...

मैने वो देखा..
जो हम सब ने देख कर भी नही देखा.

लोग कहते है, त्योहार होते है जि़दगी मे खूशीयो के लिए,

तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरस्ते देखा.


We all are very lucky to njoy lets do smthng more special Lets try to help atleast one person dis diwali. Dat wud be one of d best gift to yourself by you.

__._,_.___

Posted by: Mahesh Popat <mahesh_popat@ymail.com>
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