भुख महँगाई गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं।
भाई कविता समाप्त।
रो रहे थे चोर सारे भाव मे बहने लगे।
चोर क्या करते बेचारे उनको सब सुनने पढे।
हम तो पहले से कवी थे ।
हमने खोली ङायरी।
पाँच कविता आठ मुकतक गीत दस हमने पढ़े।
तु कवि हे हास्य रस का काश हम ये जान लेते।
एक हजार का नोट देकर मुझसे यु कहने लगे।
सच बताए ङर के मारे पहले से ही भाग लेते।
हाथ मलते रह गए ।
अतिथि को कविता सुनाना भयंकर पाप हे।
घर मेरे मेहमान थे।
कया बताए आपको हम।
हमने उनको पकङा ओर लाईट को जलाई।
चुहे मचछर ओर खटमल।
रात को कुछ चोर आए।
एक होती तो निभाता।
तीनों मुझ पर मर रहीं।
गीत सुखे पर लिखे थे
बाढ़ मे सब बह गए।
देखकर चकरा गए।
मे भी भुखा ओर भुखे यह मेरे भगवान थे।
हर तरफ चुहे ही चुहे देखकर घबरा गए।
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